सियासी मंच पर आधी आबादी का संघर्ष
सियासी मंच पर आधी आबादी का संघर्ष
भारत, जिसे “विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र” माना जाता है, ने अनेक क्षेत्रों में महिलाओं के सशक्तिकरण में महत्वपूर्ण प्रगति की है। शिक्षा, खेल, विज्ञान और प्रौद्योगिकी में भारतीय महिलाओं ने अपने कौशल और प्रतिभा का लोहा मनवाया है। हालांकि, राजनीतिक क्षेत्र में महिलाओं का प्रतिनिधित्व अभी भी सीमित है। महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी केवल एक सामाजिक मुद्दा नहीं है; यह लोकतंत्र की परिपक्वता और समावेशी विकास के लिए भी अत्यंत आवश्यक है। यह लेख भारत की राजनीति में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की वर्तमान स्थिति का गहन, डेटा आधारित विश्लेषण प्रस्तुत करेगा।
वर्ष 2024 तक, भारतीय संसद में लोकसभा और राज्यसभा दोनों मिलाकर महिलाओं का प्रतिनिधित्व लगभग 13.42% है। यह आंकड़ा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त औसत (26%) से काफी कम है। लोकसभा में 543 सीटें हैं, जिनमें से केवल 79 सीटें (14.5%) महिलाओं के हिस्से में आती हैं, जबकि राज्यसभा की 224 सीटों में से 24 सीटें (10.7%) महिलाओं के पास हैं। यह स्थिति वैश्विक औसत से बहुत पीछे है, जिससे भारत 190 देशों की सूची में महिला सांसदों की संख्या के मामले में 141वें स्थान पर आ जाता है। भारत में राज्य स्तर पर भी महिलाओं का प्रतिनिधित्व चिंताजनक है। भारत के 28 राज्यों और 8 केंद्रशासित प्रदेशों की विधानसभाओं में महिलाओं की औसत भागीदारी केवल 9% है।
सबसे अच्छा प्रदर्शन बिहार में है जहां महिलाओं का प्रतिधिनितव 17% हैं, वही राजस्थान में 15% महिला प्रतिनिधित्व के साथ दूसरे स्थान पर है। भारत में सबसे कम महिला प्रतिनिधित्व नागालैंड में है, जहां एक भी महिला प्रतिनिधि नहीं है उसके बाद 1 प्रस्तीसत प्रतिनिधि के साथ मणिपुर दुसरे सबसे कम महिला प्रतिनिधित्व वाला राज्य है। महिला आरक्षण के कारण, पंचायतों और नगर निगमों में महिलाओं की भागीदारी 33% से अधिक है। पंचायती राज्यों में महिलाओं को 50% तक आरक्षण देने वाले राज्यों (जैसे, बिहार, राजस्थान) ने जमीनी स्तर पर महिला नेतृत्व को बढ़ावा दिया है। यह सहभागिता ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के सशक्तिकरण का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। महिला आरक्षण विधेयक, जो संसद में महिलाओं के लिए 33% सीटें आरक्षित करने का प्रस्ताव करता है, पहली बार 1996 में पेश किया गया था।
यह विधेयक लोकसभा में कई बार पारित हुआ, लेकिन राज्यसभा और राजनीतिक सहमति की कमी के कारण तकरीबन 27 सालों तक लटका रहा, जो 2023 में जाके पारित हुआ। दुनिया में सबसे ज्यादा महिला प्रतिनिधित्व रवांडा में है, जो तकरीबन 61 प्रतिसत है। इसका कारण 1994 के बाद लागू किया गया महिला आरक्षण है। स्वीडन, नॉर्वे, और फिनलैंड में संसद में महिलाओं की हिस्सेदारी 40% से अधिक है। इन देशों में राजनीतिक दलों ने महिलाओं को प्रोत्साहित करने के लिए स्वैच्छिक कोटा अपनाए हैं। भारत में 2023 से पहले महिला प्रतिनिधित्व को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर कोइ भी नियम नहीं था, जिसके के कारण महिलाओं को राजनीति में बराबर की भागीदारी नहीं मिल पाई । अगर हम भारत की बात करें तो पिछले 75 वर्षों में भारतीय संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बेहद धीमी गति से बढ़ा है। 1952 में महिला प्रतिनिधित्व लोक सभा में 4.4 प्रतिसत था, जो 1984 तक जाकर 8 प्रतिसत हुआ। 2004 में लोक सभा में महिलाओं के संख्या 10.9 प्रतिसत था, जो जाकर 2019 तक 14.4 प्रतिसत तक हुआ। 2019 के लोक सभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने 12% महिलाओं को टिकट दिया था, कांग्रेस ने 13% महिलाओं को टिकट दिया था, वहीं तृणमूल कांग्रेस ने सर्वाधिक 41 प्रतिसत महिलाओं को टिकट दिया था। वहीं 2024 के लोक सभा चुनाव के बात करें तो महिला प्रतिनिधित्व 14.3% था। लेकिन वायनार्ड लोकसभा के उपचुनाव में प्रियंका गांधी को जीतने के बाद संख्या बढ़ कर 14.5 हो गई। भारत जैसे देशों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व इस लिए जरूरी है कि उनका प्रतिनिधित्व अन्य महिलाओं को भी प्रेरित करेगा , खासकर ग्रामीण और वंचित वर्ग की महिलाओं को, जिसके कारण घरेलू कार्यों से बढ़कर महिलाएं बाहरी कार्य पर भी आकर्षित होंगी। महिलाओं का राजनीतिक प्रतिनिधित्व न केवल उनके अधिकारों की रक्षा करेगा, बल्कि भारत को एक समावेशी और प्रगतिशील लोकतंत्र बनाने में भी मदद करेगा। महिलाओं को सशक्त किए बिना, लोकतंत्र अधूरा है।
मो० आदिल शमीम। गोपालगंज (बिहार)