शास्त्रीय गायन में इतनी पहचान नहीं मिली थी जितनी मिलनी चाहिए थी, 1946 में पंडित जसराज ने खाई थी कसम
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17 अगस्त : पद्म विभूषण से सम्मानित पंडित जसराज का निधन आज ही के दिन 2020 में हुआ था . अमेरिका के न्यू जर्सी में उन्होंने आखिरी सांस ली थी. हां, ये सही है कि वे अब इस दुनिया में नहीं हैं. लेकिन संगीत में. उससे छिड़ी तान में. तरंगों में तो वे रहेंगे हमेशा. शास्त्रीय संगीत में तो बचपन से उनका मन बसता था. पंडित जसराज का जन्म 28 जनवरी 1930 को हरियाणा के एक गांव में हुआ. पंडित जसराज के नाम से वहां एक पार्क भी है. वे मेवाती घराने से ताल्लुक़ रखते थे. दिग्गज गायक ने अपने पिता से संगीत सीखा था. बस! पढ़ने में मन ना लगता था. तीन साल की उम्र में उन्हें संगीत ने अपनी ओर खींचना शुरू कर दिया था. 6 साल की उम्र में पंडित जसराज ने स्कूल जाना शुरू किया. उस दौरान बेगम अख्तर का रिकॉर्ड ‘दीवाना बनाना है तो दीवाना बना दे, वरना कहीं तकदीर तमाशा न बना दे..’ निकला था. ये गज़ल जसराज के दिल को छू गई. वे हमेशा इसे ही गुनगुनाते रहते थे.
लेकिन वक्त भी कहां ठहरता है. पंडित जसराज के पिता का अचानक देहांत हो जाने से उनके घर की आर्थिक हालत बिगड़ने लगी. एक इंटरव्यू में पंडित जी ने खुद बताया कि वे स्कूल से आकर तबला बजाते थे और घंटों रियाज करते थे. इनके एक और भाई थे जिनका नाम था पंडित प्रताप नारायण. म्यूजिक डायरेक्टर ललित-जतिन के पिताजी. भाई ने एक दिन मुझे तबला बजाते हुए देखा और सोचा ये कितना अच्छा तबला बजाते हैं क्यों ना इन्हें तबला बजाना ही सीखा दें. मुझे तबला सीखा दिया. अब हमें किसी भी कार्यक्रम के लिए बाहर से किसी तबले वाले को नहीं बुलाना पड़ता था. फीस बचने लगी.
पंडित जसराज ने बताया कि इस वक्त प्रसिद्ध दिग्गज संगीतकार कुमार गंधर्व ने मेरे भाई से मुझे संगीत के एक कार्यक्रम में ले जाने की इजाजत मांगी.उस कार्यक्रम में मैंने उनका गाना सुना. उनके लिए बजाया. इस तरह मैं कई कार्यक्रमों में जाने लगा. एक बार पाकिस्तान के लाहौर में जन्माष्टमी का जश्न था. स्टेज सजाया गया. लेकिन वहां तबले और अन्य संगीत यंत्र नहीं थे. मैंने आयोजक के पूछा तबला कहां है? उसके कहा गड्ढे में. मैंने कहा गड्ढे में ऐसा क्यों? वो तो स्टेज पर होना चाहिए. आयोजक ने कहा कि तबला बजाने वाले रागी के साथ बैठेंगे? ऐसा नहीं होता. उनकी जगह नीचे है. ये बात सुनकर मेरी आंखों में आंसू आ गए. मैं पांडाल से बाहर जाकर रोने लगा. मेरे भाई ने मुझे रोते देखा तो पूछा रो क्यों रहे हो. चलो अंदर तबला बजाना है. मैंने तबला बजाने से इंकार कर दिया. बाहर से किसी को फिर तबला बजाने के लिए बुलाया गया. उस दिन मैंने तबला बजाना छोड़ दिया और गाने लगा.
पंडित जसराज ने एक किस्सा सुनाते हुए कहा कि उन्हें को शास्त्रीय गायन में इतनी पहचान नहीं मिली थी जितनी मिलनी चाहिए थी. इसलिए सन 1946 में पंडित जसराज ने कसम खाई कि जब तक उन्हें पहचान नहीं मिलेगी. लोग उन्हें जानना शुरू नहीं करेंगे वे अपने बाल नहीं काटेंगे. फिर साल 1952 में जब लोगों को लगा मैं अच्छा गाता हूं. उसके बाद मैंने बाल काटे.
पंडित जसराज की प्रेम कहानी भी काफी दिलचस्प है. वी. शांताराम की बेटी मधुरा का जन्म 1937 में हुआ था. वी. शांताराम बहुत बड़े निर्माता-निर्देशक थे. उनकी बेटी मधुरा ने एक बार पंडित जसराज को गाना सुनाया. ये गाना उन्हें बड़ा अच्छा लगा. धीरे-धीरे मधुरा का जसराज की तरफ झुकाव बढ़ने लगा. लेकिन वी. शांताराम पंजाबी लड़के और उसकी कमाई को लेकर काफी चिंतित थे. उन्हें लगा कि पता नहीं बेटी को खुश रख पाएगा या नहीं. शांताराम ने जसराज के चाचाजी से पूछा कितना कमा लेता है आपका भतीजा. उन्होंने कहा- 200…300 महीना. शांताराम ने फिर पूछा-कमाई बढ़ेगी? चाचाजी ने कहा-घट सकती है. शांताराम को उनका ईमानदार जवाब पसंद आया और अपनी बेटी की शादी पंडित जसराज के साथ करने के लिए हां कर दी. यह 1962 की बात है.
बता दें, पंडित जसराज की तरह ही उनकी बच्चे भी काफी प्रतिभाशाली हैं. उनकी पत्नी मधुरा शांताराम, बेटा शारंग देव पंडित और बेटी दुर्गा जसराज हैं. दुर्गा जसराज अपने पिता की तरह न सिर्फ म्युजिशयन हैं बल्कि एक एक्ट्रेस भी हैं. उन्होंने कई फिल्मों में काम किया है. वहीं शारंग एक म्यूजिक डायरेक्टर हैं.