जीवन परिचय

मुत्तु लक्ष्मी रेड्डी – महिला और बच्चों की चिकित्सा में विशेषता प्राप्त करने के लिए भेजा इंग्लैंड

मुत्तु लक्ष्मी रेड्डी : हमारे देश के साथ ये विडंबना रही है कि यहां समाज में बदलाव लाने के लिए भीड़ की नहीं बल्कि एक ऐसे इंसान की आवश्यकता होती है जिसके अंदर सामाजिक कुरीतियों से लड़ने और जीतने का जज्बा हो। लेकिन ये अलग बात है कि ऐसे लोग विरले ही जन्म लेते हैं और जब बात महिला सशक्तिकरण की हो तो भारतीय समाज में सदियों से महिलाओं को घर की चारदीवारियों के भीतर रहने वाली महज एक वस्तु ही माना गया है। हालांकि पिछले 4-5 दशकों से हमारे समाज ने महिलाओं को भी अब बराबर का अधिकार देना शुरू कर दिया है। ऐसे ही सामाजिक परिवर्तन लाने वाली एक महान महिला थीं मुत्तु लक्ष्मी रेड्डी ।

डॉ. मुत्तू लक्ष्मी रेड्डी लड़कों के स्कूल में पढ़ने वाली पहली लड़की, डॉक्टर बनने वाली पहली महिला, विधानसभा की पहली सदस्य और उपाध्यक्ष बनने वाली पहली महिला थीं। उनका जन्म 30 जुलाई, 1886 ई. को दक्षिण की पुडुकोता रियासत में हुआ था। रियासत में शिक्षा पाने वाली वे पहली छात्रा थीं। माता-पिता उन्हें अधिक शिक्षित करने के पक्ष में नहीं थे। अपनी योग्यता से उन्होंने (Muthulakshmi Reddy) रियासत की छात्रवृत्ति प्राप्त की और 1912 में मद्रास मेडिकल कॉलेज से विशेष योग्यता के साथ प्रथम श्रेणी में डॉक्टर की डिग्री ले ली। अपनी निजी प्रैक्टिस शुरू करने के कुछ समय बाद ही उनकी ख्याति फैल गई।

1925 में भारत सरकार ने महिला और बच्चों की चिकित्सा में विशेषता प्राप्त करने के लिए मुत्तु लक्ष्मी (Muthulakshmi Reddy) को इंग्लैंड भेजा था। अपने चिकित्सा कार्य के साथ मुत्तू लक्ष्मी सार्वजनिक जीवन में भी भाग लेती रहीं। 1926 में वे मद्रास लेजिस्टलेटिव काउंसिल की सदस्य नामजद हुईं। इस अवधि में ‘देवदासी’ प्रथा रोकने के लिए कानून बनवाना उनका एक महत्त्वपूर्ण काम था। उन्होंने समाज सेवा की, खासकर के महिलाओं और बच्चों के कल्याण की अनेक योजनाएं आरंभ कीं। 1930 में गांधीजी की गिरफ्तारी के विरोध में उन्होंने काउंसिल  से त्यागपत्र दे दिया था।

डॉ. मुत्तू लक्ष्मी (Muthulakshmi Reddy) महिला संगठनों से जीवनपर्यंत जुड़ी रहीं। एनीबेसेंट की मृत्यु के बाद ‘भारतीय महिला संगठन’ की अध्यक्ष वही बनीं। मद्रास के निकट अडियार में कैंसर की रोकथाम के लिए पहला केंद्र उन्हीं के प्रयत्न से स्थापित हुआ। उनके ऊपर स्वामी विवेकानंद और गांधीजी के विचारों का बड़ा प्रभाव था। स्वतंत्रता के बाद वे समाज कल्याण की अनेक संस्थाओं से जुड़ी रहीं।

महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए वे एक जुझारू नेता थीं। सेवा के अनेक कार्यों के उपलक्ष्य में राष्ट्रपति की ओर से 1956 में मुत्तुलक्ष्मी (Muthulakshmi Reddy) को ‘पद्म भूषण’ की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया था। 1968 में भारत की इस महान बेटी का देहांत हो गया।

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