जीवन परिचय

सबसे बड़े दानवीर : छोटी-सी कंपनी को लाखों करोड़ों की कंपनी में बदलने वाले पद्मभूषण अज़ीम प्रेमजी

नई दिल्ली. अज़ीम प्रेमजी (Azim Premji) भारत की एक ऐसी शख्सियत हैं, जिन्हें लोग बिजनेसमैन के तौर पर कम और परोपकारी दानवीर के तौर पर ज्यादा जानते हैं. प्रेमजी भारत की टॉप IT कंपनियों में से एक विप्रो (Wipro) के फाउंडर हैं. विप्रो की नेटवर्थ 3 लाख 46 हजार 537 करोड़ रुपये है. एक छोटी-सी कंपनी कैसे लाखों करोड़ की मल्टी नेशनल कॉर्पोरेशन (MNC) में बदल गई, इसे समझने के लिए आपको जानना होगा अज़ीम प्रेमजी के जीवन का सफर. पद्मभूषण अवार्ड से नवाजे जा चुके प्रेमजी आज अपना 75 वां जन्मदिन मनाने जा रहे हैं, आइए जाने उनके जीवन के सफर में सादगी, ईमानदारी, साहस और मेहनत के कई किस्से जुड़े हुए हैं.

बिजनेसमैन के घर पैदा हुए अज़ीम प्रेमजी
प्रेमजी को जानने से पहले जरूरी है कि उनका पारिवारिक इतिहास समझ लिया जाए. अज़ीम का जन्म एक बिजनेसमैन के घर हुआ था. उनके पिता मोहम्मद हाशिम प्रेमजी एक नामी चावल कारोबारी थे. बर्मा (अब म्यांमार) में उनका चावल का बड़ा बिजनेस था, जिसके चलते उन्हें राइस किंग ऑफर बर्मा (Rice King of Burma) कहा जाता था.

वो बर्मा (अब म्यांमार) से भारत आए और गुजरात में रहने लगे. गुजरात आकर भी उन्होंने चावल का कारोबार शुरू किया और धीरे-धीरे उन्हें भारत के बड़े चावल कारोबारियों में गिना जाने लगा. कहा जाता है कि 1945 (जब भारत आज़ाद नहीं था) में अंग्रेजों की कुछ नीतियों की वजह से उन्हें अपना चावल का कारोबार बंद करना पड़ा. अज़ीम प्रेमजी के पिता जी ने 1945 में वनस्पति घी बनाने का शुरू किया और एक कंपनी बनाई जिसका नाम था- वेस्टर्न इंडियन वेजिटेबल प्रॉडक्ट्स लिमिडेट (Western Indian Vegetable Products Limited). यह कंपनी वनस्पति तेल और कपड़े धोने वाला साबुन बनाती थी.

इसे इत्तेफाक ही कहा जा सकता है कि इस कंपनी की स्थापना अज़ीम प्रेमजी के जन्मवर्ष में ही हुई. अज़ीम का जन्म 24 जुलाई 1945 को हुआ तो कंपनी की स्थापना 29 दिसबंर 1945 को हुई.

विदेश में पढ़ रहे थे, मगर…
चूंकि अज़ीम प्रेमजी के परिवार की आर्थिक हालत अच्छी थी, तो शुरुआती जीवन में पढ़ाई के दौरान उन्हें कोई दिक्कत नहीं आई. मुंबई में स्कूली शिक्षा ली और फिर इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग (Electrical Engineering) करने अमेरिका स्थित स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी (Stanford University) चले गए. उस समय अज़ीम प्रेमजी की उम्र 21 वर्ष थी, लेकिन उनके साथ कुछ ऐसा होने वाला था, जिससे उनकी जिंदगी पूरी तरह बदल जाने वाली थी.

बात 1966 की है, जब स्टैनफोर्ड में पढ़ाई करते समय उन्हें पता चला कि उनके पिता का देहांत हो गया है. अज़ीम प्रेमजी को स्वदेश लौटना पड़ा.

परीक्षा की घड़ी में डिगे नहीं
अज़ीम प्रेमजी के लिए यह वक्त बेशक मुश्किल-भरा था. कदम-कदम पर उनके भरोसे और साहस की परीक्षा हो रही थी. मात्र 21 वर्ष की उम्र में अज़ीम प्रेमजी ने कंपनी की कमान खुद संभालने का फैसला लिया. इस फैसले का विरोध किया इसी कंपनी के एक शेयरहोल्डर ने. उसने कहा कि 21 साल का लड़का, जिसे खासकर उस काम का कोई अनुभव नहीं है, कंपनी को संभाल नहीं पाएगा. यह बात हालांकि 21 वर्षीय युवक का हौसला डिगा सकती थी, लेकिन अज़ीज प्रेमजी ने इसे एक चैलेंज के तौर पर लिया और कंपनी की कमाल संभाली. उन्होंने कंपनी के कार्यक्षेत्र को काफी बढ़ाया.

IT कंपनी Wipro का उदय
1977 तक कारोबार काफी फैल गया और अज़ीम प्रेमजी ने कंपनी का नाम बदलकर विप्रो (Wipro) कर दिया. सन् 1980 के बाद एक बड़ी आईटी कंपनी आईबीएम (IBM) भारत से कारोबार समेटकर निकली तो अज़ीम प्रेमजी ने अपनी दूरदृष्टि से पहचान लिया कि उस क्षेत्र में आने वाले समय में काफी काम होगा. फिर क्या था…

Wipro ने एक अमेरिकी कंपनी सेंटिनल कंप्यूटर्स (Sentinel Computers) के साथ मिलकर माइक्रोकंप्यूटर्स बनाने का काम शुरू कर दिया. सेंटिनल कंप्यूटर्स के साथ टेक्नोलॉजी शेयरिंग का एग्रीमेंट था. कुछ समय बाद विप्रो ने अपने हार्डवेयर को सपोर्ट करने वाले सॉफ्टवेयर बनाने का काम भी शुरू कर दिया.

कार पार्किंग वाला दिलचस्प किस्सा
अज़ीम प्रेमजी अपने ऑफिस परिसर में जहां अपनी कार पार्क करते थे, एक दिन किसी इम्प्लॉई ने वहां कार पार्क कर दी. जब ये बात कंपनी के अधिकारियों को पता चली तो उस जगह को सिर्फ प्रेमजी की कार पार्क करने की जगह घोषित कर दिया गया. ये बात जब अज़ीम प्रेमजी को पता चली तो उन्होंने इस रूल का विरोध किया. उन्होंने कहा, “वहां कोई भी अपनी गाड़ी पार्क कर सकता है. यदि मुझे अपनी गाड़ी वहां पार्क करनी है तो मुझे दूसरों से पहले ऑफिस आना चाहिए.

दानवीर कर्ण सी है परोपकारी की गाथा

हम सब दानवीर कर्ण के बारे में जानते हैं. उनके पास जो भी मांगने आया, वो कभी खाली हाथ नहीं लौटा. अज़ीम प्रेमजी ने अपनी कमाई का मोटा हिस्सा परोपकारी कार्यों में लगाया. वे अपने हिस्से के 60 से ज्यादा शेयर उनके नाम से चल ही फाउडेंशन के नाम कर चुके हैं. यह संस्था भारत के कई राज्यों में स्कूली शिक्षा से लेकर कई अन्य कार्यों में जुटी है.

प्रतिदिन 22 करोड़ रुपये का दान
अज़ीम प्रेमजी ने 2019-20 में परोपकार कार्यों के लिए हर दिन करीब 22 करोड़ रुपये यानी कुल मिलाकर 7,904 करोड़ रुपये का दान दिया.

बात 1966 की है, जब स्टैनफोर्ड में पढ़ाई करते समय उन्हें पता चला कि उनके पिता का देहांत हो गया है. अज़ीम प्रेमजी को स्वदेश लौटना पड़ा.

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