लखनऊ में पुलिस कमिश्नरेट लागू होने के बाद भी अपराधों पर नहीं लग पा रहा अंकुश
लखनऊ: राजधानी में पुलिस कमिश्नरेट लागू होने के बाद भी अपराधों पर अंकुश नहीं लग पा रहा है। बेखौफ अपराधी वारदात पर वारदात कर पुलिस को चुनौती दे रहे हैं। हत्या, लूट व महिलाओं से चेन छीनने की घटनाएं आम हो गई हैं। कमिश्नरेट में खाकी के खौफ का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बेखौफ बदमाशों ने पिछले डेढ़ माह में हत्या और लूट की 26 वारदात को अंजाम दे डाला है। यही नहीं बदमाशों ने बंथरा इलाके में मंगलवार डिप्टी एसपी की मां से भी चेन लूटने का दुस्साहस किया।
पुलिस कमिश्नरेट लागू होने से पहले जिले में लोगों की सुरक्षा के लिए एसएसपी के पद पर एक आईपीएस की तैनाती की जाती थी। उसके मातहत पांच से छह हजार पुलिसकर्मी तैनात रहते थे। अपराध की रोकथाम और लोगों की सुरक्षा के मद्देनजर जिले में पुलिस कमिश्नरेट व्यवस्था लागू की गई। अब एडीजी रैंक के पुलिस अफसर को सीपी के पद पर तैनात करने के साथ आईपीएस अफसरों की लंबी फौज है। हर जोन में डीसीपी के पद पर आईपीएस अफसर तैनात हैं। इसके अलावा एडीसीपी की कुर्सी पर भी कई आईपीएस तैनात हैं। सूत्रों की मानें तो पुलिस कमिश्नरेट में जिले में मौजूदा समय करीब 11 हजार पुलिसकर्मी तैनात हैं। महिलाओं की सुरक्षा के लिए 1090 के अलावा महानगर में एक अलग महिला सेल काम कर रही है, जिसकी मॉनिटरिंग भी आईपीएस अफसर के हाथों में है। हर जोन में क्राइम ब्रांच और सर्विलांस की टीमें भी सक्रिय हैं। इसके बावजूद अपराधियों में खाकी का खौफ नहीं है।
भरी कचहरी में बंदी जीवा की हत्या का दुस्साहस
पुराना हाई कोर्ट परिसर स्थित एससी-एसटी कोर्ट में आठ जून को भरी कचहरी में पुलिसकर्मियों की मौजूदगी में पेशी पर आए बंदी संजीव माहेश्वरी उर्फ जीवा की गोली मारकर हत्या कर हत्यारोपित विजय ने खाकी को खुली चुनौती दे दी। कोर्ट के गेटों पर तैनात पुलिसकर्मियों को चकमा देकर हत्यारोपित रिवॉल्वर लेकर कोर्ट में दाखिल हुआ और बंदी को गोलियों से छलनी कर दिया था। पुलिस कमिश्नरेट लागू होने के बावजूद किसी अपराधी का अब तक का यह सबसे बड़े दुस्साहसिक कदम था। इस मामले में शासन ने जिले की पुलिस को विवेचना से अलग कर जांच की जिम्मेदारी तीन आईपीएस सदस्यों की एसआईटी को सौंप दी है, जिनकी निगरानी में इंवेस्टिगेशन का दावा किया जा रहा है।
खाकी के लिए चुनौती बने लुटेरे
राजधानी में औसतन हर सप्ताह दो-तीन लोगों से मोबाइल लूट की घटनाएं हो रही हैं। पीजीआई इलाके में सोमवार शाम को एक युवती ने भाइयों संग मिलकर लुटेरों को गिराकर अपना मोबाइल लुटने से बचाया, लेकिन तकरीबन हर थाना क्षेत्र में सक्रिय मोबाइल लुटेरे पुलिस के लिए मुसीबत बन गए हैं। इसके साथ ही चेन स्नैचरों ने भी महिलाओं का जीना दूभर कर दिया है। गोमतीनगर पुलिस के हत्थे चढ़े तीन लुटेरों से पूछताछ में सामने आया कि गैंग के तीनों सदस्य रोज शाम को किसी न किसी महिला को निशाना बनाते थे। उनके पास से पुलिस ने पांच चेन भी बरामद की थीं।
चोरी की पैरवी के लिए महापौर को जाना पड़ा थाने
राजधानी में चोरों ने भी लोगों की नाक में दम कर रखा है। हर सप्ताह औसतन चार घरों से चोर लोगों की गाढ़ी कमाई उड़ा रहे हैं। पुलिस ने कई गिरोह के सदस्यों को सलाखों के पीछे भी भेजा, लेकिन चोरी की घटनाएं थम नहीं रही हैं। हालात ये हैं कि जानकीपुरम विस्तार में रहने वाले एक पीड़ित की फरियाद पर चोरी के मामले में कार्रवाई के लिए महापौर सुषमा खर्कवाल को जानकीपुरम थाने तक जाना पड़ा था। दरअसल, वह जिस पीड़ित के लिए थाने गई थीं, उसके घर में लगातार दो साल से जून में ही चोरी हो रही है।
बाहरी बदमाशों के लिए चलाया जा रहा अभियान
जेसीपी क्राइम, आकाश कुलहरि ने कहा कि शहर के बदमाशों पर पूरी तरह से अंकुश लगा लिया गया है। ज्यादातर घरेलू क्राइम हो रहे हैं। उनके आरोपित पकड़े भी गए हैं। बाहर से आकर कुछ बदमाशों ने माहौल बिगाड़ने की कोशिश की है। कई बदमाश सलाखों के पीछे भी भेजे गए हैं। इनकी धरपकड़ के लिए ऑल आउट अभियान चलाया जा रहा है।
अधकचरे सिस्टम का नतीजा है बढ़ता क्राइम
मामले पर पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह ने कहा कि जिले में पुलिस कमिश्नरेट के नाम पर अधकचरा सिस्टम लागू कर दिया गया है। फिर भी पहले की अपेक्षा कुछ सुधार हुआ है। आर्म्स लाइसेंस देने की पावर डीएम के पास है, कमिश्नरेट में सीपी के पास होना चाहिए। होटल, रेस्टोरेंट व बार संचालन की अनुमति और इनके खिलाफ निरोधात्मक कार्रवाई की पावर पुलिस को नहीं दी गई। रेग्युलेशन वाली कोई भी पावर पुलिस के पास नहीं है, जबकि अपराध पनपने की जड़ यही है। कमिश्नरेट सिस्टम में डीसीपी के एरिया को डिस्ट्रिक घोषित किया जाता है। एडीसीपी को आईजी रेंज की पावर दी जाती है। यहां ऐसा कुछ नहीं किया गया। सिर्फ इतना किया गया कि सीपी के पद पर एडीजी रैंक के अफसर की तैनाती कर दी गई है।