रंगमंच की दुनिया और फिर बॉलीवुड की उन गलियों में कैसे पहुंच गए शोले के ठाकुर
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बॉलीवुड: बॉलीवुड की सबसे चर्चित फिल्मों में से एक ‘शोले’ के ठाकुर यानी संजीव कुमार को भला कैसे भुलाया जा सकता है। यह संजीव कुमार के उन किरदार में से एक है, जिसने एक्टिंग की दुनिया में उन्हें अमर कर दिया। जहां फिल्मी पर्दे पर लोग बुढ़ापे में भी रोमांटिक रोल करना काफी पसंद करते हैं, वहीं संजीव कुमार के साथ मामला उल्टा था। संजीव तब युवा थे और बुढ़ापे वाला रोल उन्हें काफी पसंद था और इसके पीछे भी एक कहानी है। संजीव कुमार ‘आंधी’, ‘मौसम’, ‘नौकर’, ‘नया दिन नई रात’, ‘पति-पत्नी और वो’ जैसी तमाम फिल्में कीं और 47 की छोटी उम्र में उन्होंने दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया। 9 जुलाई 1938 को बॉलीवुड के दिग्गज कलाकारों में गिने जानेवाले संजीव कुमार का जन्म हुआ था।
Sanjeev Kumar का पूरा नाम हरिहर जेठालाल जरीवाला था और उन्हें करीब से जानने वाले लोग हरीभाई भी कहकर पुकारा करते थे। गुजरात के एक जैन परिवार में जन्मे संजीव कुमार आज अगर जिंदा होते तो वह अपनी जिंदगी के 84वें पड़ाव पर होते। संजीव कुमार के परिवार में ज़रदोज़ी (कपड़ों पर ज़ड़ी वाली कढ़ाई) का काम किया जाता था और संजीव कपूर भी अपने भाईयों के साथ मिलकर ये काम किया करते थे। इस काम को करते-करते संजीव कुमार को एक्टिंग का बुखार चढ़ा। इसी शौक की बदौलत अपने पारिवारिक काम को छोड़कर वह रंगमंच की दुनिया और फिर बॉलीवुड की उन गलियों में पहुंच गए, जहां की चमकर-धमक की पूरी दुनिया ही दीवानी है।
आपको जानकर हैरानी होगी कि शुरुआत में संजीव कपूर केवल पर्दे को खींचने का काम करते थे। इसके बाद धीरे-धीरे उनका एक्टिंग से लगाव देखकर उन्हें छोटे-मोटे रोल भी मिलने लगे। एक्टिंग का कीड़ा उनपर ऐसे ही नहीं चढ़ा था, वह अंदर तक इस कदर फैल चुका था कि उनकी एक्टिंग का लोग लोहा मानने लगे थे और थिएटरों में लीड रोल में नजर आने लगे।
इसके बाद साल 1960 में उन्होंने ‘हम हिन्दुस्तानी’ से अपने फिल्मी सफर की शुरुआत की। हालांकि, फिल्म में वैसा रोल नहीं था जिसे लोग याद रख सकें। इस फिल्म में काफी छोटी सी भूमिका निभाने के बाद उन्हें 1965 में मिली ‘निशान’, जो एक बी ग्रेड की फिल्म थी। हालांकि, लीड रोल के बावजूद संजीव कुमार ऑडियंस पर अपनी पहचान बनाने में नाकाम रहे। इसके बाद उन्हें पहचान मिली साल 1968 में आई फिल्म ‘संघर्ष’ से जिसमें 2-3 सीन में वह दिलीप कुमार के साथ नजर आए और उन्होंने दर्शकों के दिलों में अपनी छाप छोड़ दी। इसके बाद जो बचाखुचा था उसे 1970 की फिल्म ‘खिलौना’ ने पूरा किया और वह लोगों के दिलों में ऐसे बसे कि हमेशा के लिए रह गए। एक्टिंग की दुनिया में ऐसे छाए कि उन्हें फिल्म ‘दस्तक’ और ‘कोशिश’ के लिए दो नैशनल फिल्म अवॉर्ड्स भी मिले।
फिल्में और अवॉर्ड्स की झड़ी लगा दी संजीव कुमार ने
संजीव कुमार ‘शोले’, ‘आंधी’, ‘मौसम’, ‘नमकीन’, ‘अंगूर’, ‘सत्यकाम’, ‘मौसम’, ‘दस्तक’, ‘कोशिश’, ‘नौकर’, ‘नमकीन’, ‘अंगूर’, ‘आशीर्वाद’, ‘चरित्रहीन’, ‘नया दिन नई रात’, ‘पति-पत्नी और वो’, ‘त्रिशूल’, ‘विधाता’ जैसी ढेरों फिल्में कीं और नैशनल अवॉर्ड्स के अलावा ढेर सारे फिल्मफेयर अवॉर्ड्स भी जीते।