उप्र/बिहार

बिहार कांग्रेस में भी नीतीश इम्पैक्ट! 18 साल की उम्र में पार्टी जॉइन करने वाले कुंतल कृष्ण का इस्तीफा

पटना : बिहार कांग्रेस में गुटबाजी इन दिनों काफी चरम पर है। इनमें एक गुट ऐसा है जो वर्षोवर्ष से पार्टी में है और पार्टी की रणनीति को धारदार बनाते रहा है। लेकिन आजकल कांग्रेस में एक दूसरा गुट भी हावी हो गया है, जो कांग्रेस की नीति को महागठबंधन की राह पर उतार कर मूल कांग्रेस की चेतना को खत्म करने में लगा है। हो ये रहा है कि कांग्रेस में प्रमुख भूमिका निभाने वाले का चयन भी अब कोई और कर रहा है। आरोप ये लगने लगा हैं कि कांग्रेस के भीतर महत्वपूर्ण भूमिका दिलाने में भी नीतीश कुमार की राय चलती है।

कांग्रेस के भीतर अखिलेश सिंह के प्रदेश अध्यक्ष बनते ही गुटबाजी शुरू हो गई। पुराने कांग्रेसी बैठे रह गए और दूसरे दल से आए अखिलेश सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। कांग्रेस के भीतर इस बात को लेकर नाराजगी थी कि इस नाम पर मुहर लालू प्रसाद और नीतीश कुमार की थी।

शकील अहमद खान को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया

बिहार विधानसभा में पहले से ही विधायक दल के नेता रहे अजीत शर्मा को अपदस्थ करने के पीछे कहीं न कहीं नीतीश कुमार की मानी जा रही है। नए ओहदा पाए शकील अहमद खान और नीतीश कुमार की दोस्ती भी जगजाहिर है। असमय इस बदलाव की जरूरत को भी कांग्रेस के भीतर नकारा गया। कांग्रेस लीडर के तरफ से जो बातें मीडिया में आई वो ये कि मुस्लिम मत को आकर्षित करने के लिए ये निर्णय लिया गया। जबकि, महागठबंधन में मुस्लिम और यादव मतों की प्राप्ति के लिए राजद का होना ही काफी था।

कांग्रेस के प्रवक्ता रहे कुंतल कृष्णा ने क्या कहा?

18 वर्ष की उम्र में कांग्रेस जॉइन करने वाले कुंतल कृष्णा कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को अपना इस्तीफा भेज दिया। अपने पत्र में बहुत सारे आरोप लगाए। एनबीटी ऑनलाइन से बातचीत में भी उन्होंने कहा कि कांग्रेस के अंदरूनी फैसला भी अब किसी को खुश करने के लिए किया जाता है। महागठबंधन में रह कर मंत्रिपरिषद में अपनी हिस्सेदारी लेने की भी हिम्मत नहीं है। आज जिस व्यक्ति ने लगातार कांग्रेस का विरोध किया और जब वे राजनीत के हाशिए पर चले गए, तब वे कांग्रेस की तरफ हाथ बढ़ा रहे हैं। सवाल उठता है जिस कांग्रेस साथी ने राजीव गांधी को अपना आइडल नेता माना है, वो किसी और को नेता कैसे मान सकता है? आज कांग्रेस की स्थिति यही है कि बिहार में हो रहे करप्शन में जबरन भागीदार बनना पड़ रहा है।

बहरहाल, बिहार में कांग्रेस एक मजबूत नहीं एक मजबूर दल बन कर रह गई है। सत्ता की राजनीति के लिए समझौता का कोई आदर्श नहीं रह गया। वरना, क्या जरूरी था कि कांग्रेस आज उसके साथ राजनीति करने को विवश है, जिसका जन्म ही कांग्रेस राजनीति के विरुद्ध हुआ है।

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