आईएएस की नौकरी छोड़ कैसे बनी समाज सेविका, सूचना का अधिकार लागू कराने में दिया योगदान
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26 मई. भारत में महिलाओं की दशा को सुधारने के लिए इन्हीं महिलाओं में से कुछ आगे बढ़कर सामने आईं और अपनी आवाज बुलंद की। कई सामाजिक कार्यकर्ता महिलाओं ने अन्याय और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई। देश की कई महिलाओं की स्थिति, गरीब और मजदूर किसानों की स्थिति सुधारने के लिए कार्य किए। इन्हीं में एक महिला समाज सेविका हैं अरुणा राॅय। अरुणा राॅय ने अपने जीवन में कई महत्वपूर्ण कार्य किए और कई सम्मान व पुरस्कार प्राप्त किए। चलिए जानते हैं कि अरुणा रॉय कौन हैं, उनकी उपलब्धि और सफलता के बारे में जानें।
अरूणा राय एक राजनैतिक और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। वह भारतीय प्रशासनिक सेवा में भी कार्यरत रह चुकी हैं। उन्हें देश के कई बड़े और सम्मानित पुरस्कार भी दिए जा चुके हैं। उन्होंने गरीबों, किसानों के लिए विशेष प्रयास किए और सूचना का अधिकार (Right To Information) को लागू कराने में विशेष योगदान दिया।
सामाजिक कार्यकर्ता अरूणा राय का जन्म 26 मई,1946 को तमिलनाडु के चेन्नई में हुआ था। उन दिनों यह ब्रिटिश सरकार के मद्रास प्रेसीडेंसी का हिस्सा हुआ करता था। उनके पिता ईडी जयराम और माता हेमा तमिल ब्राह्मण परिवार से थे। जिस परिवार में अरुणा राय पली बढ़ी थीं, उसकी कई पीढ़ियां लोक सेवा से जुड़ी थीं। उन्होंने पारंपरिक परिवार की रूढ़िवादी मान्यताओं को खारिज किया।
अरुणा बचपन से मेहनती और मेधावी रहीं। उन्होंने शिक्षा पूरी करने के बाद प्रशासनिक सेवा में जाने का फैसला लिया और 1968 में आईएएस की परीक्षा पास कर ली। आईएएस बनने के बाद उन्हें देश के कई गांवों को देखने का मौका मिला, जहां कि बदहाली देख उन्हें एहसास हुआ कि वह देश के भ्रष्ट तंत्र के बीच रहकर कोई बदलाव नहीं ला पाएंगी। इसलिए उन्होंने आईएएस के पद पर सात साल का अनुभव लेने के बाद नौकरी छोड़ दी।
सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर अरुणा-
आईएएस की नौकरी छोड़ने के बाद अरुणा ने राजस्थान में सोशल वर्क एंड रिसर्च सेंटर में काम करना शुरू किया। इस संस्था की स्थापना अरुणा के पति संजित बंकर ने की थी। 1983 में पति से अलगाव होने तक अरुणा ने इसी संस्था के साथ काम करने हुए गरीबों के लिए प्रयास किया। बाद में राजस्थान के ही एक गांव में आकर काम करने लगीं। अपने साथियों के साथ मिलकर उन्होंने मजदूर किसान शक्ति संगठन की स्थापना की। यह गैर राजनीतिक जन संगठन मजदूर और गांव के किसानों के लिए काम करती थी।