जीवन परिचय

नीलम संजीव रेड्डी जयंती : सबसे कम उम्र में बनाया था राष्ट्रपति बनने का रिकॉर्ड

नई दिल्ली: राजनीति का दायरा बहुत विशाल है। इतना विस्तृत कि शीर्ष शख्सियत का संकीर्णता की सीमा लांघ दिया जाना भी राजनीति की परिधि में ही सिमट जाए। इसीलिए तो कहा जाता है कि राजनीति में कुछ भी हो सकता है। और ऐसा ही कुछ हुआ नीलम संजीव रेड्डी के साथ। बात वर्ष 1969 की है जब कांग्रेस पार्टी ने अपने एक सिद्धांतवादी सदस्य को राष्ट्रपति पद के लिए हो रहे चुनाव का उम्मीदवार बना दिया। लेकिन देश के प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपनी ही पार्टी के उम्मीदवार के खिलाफ खुलेआम मोर्चा खोल दिया। वही बात कि राजनीति में कुछ भी हो सकता है, कि राजनीति का दायरा बहुत विशाल है आदि।

 


निर्विरोध निर्वाचित पहले राष्ट्रपति थे नीलम संजीव रेड्डी-
बहरहाल, 11 फरवरी 1977 को राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद की अचानक मृत्यु हो गई और संविधान के अनुच्छेद 65(1) के तहत उप राष्ट्रपति बीडी जत्ती ने कार्यकारी राष्ट्रपति का कार्यभार संभाल लिया। संविधान के अनुसार राष्ट्रपति का पद खाली होने की तिथि से छह महीने के अंदर नए राष्ट्रपति को शपथ ग्रहण कर लेना था। हालांकि, राष्ट्रपति की मृत्यु के एक दिन पहले ही लोकसभा चुनाव का आगाज होकर 13 मई तक चला था, इसलिए राष्ट्रपति चुनाव तुरंत नहीं करवाया जा सका। लोकसभा चुनाव के बाद जून-जुलाई में 11 राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव हुए। इन सबके संपन्न होने के बाद 4 जुलाई 1977 को राष्ट्रपति चुनाव की अधिसूचना जारी हो सकी और 6 अगस्त को मतदान हुआ। यूं तो 37 उम्मीदवारों ने राष्ट्रपति चुनाव के लिए नामांकन का पर्चा भरा, लेकिन नीलम संजीव रेड्डी का निर्विरोध निर्वाचन हुआ।
दरअसल, लोकसभा के तत्कालीन सचिव और राष्ट्रपति चुनाव के रिटर्निंग ऑफिसर अवतार सिंह रिखी ने नामांकन पत्रों की जांच की तो रेड्डी के सिवा अन्य सभी 36 उम्मीदवारों के पर्चे शर्तों पर खरे नहीं उतर सके, इसलिए खारिज कर दिए गए। इस तरह, चुनाव मैदान में एकमात्र उम्मीदवार नीलम संजीव रेड्डी बचे और मतदान करवाने की जरूरत नहीं पड़ी। 21 जुलाई 1977 को उम्मीदवारी वापस लेने की आखिरी तारीख थी। उस शाम 3 बजे जब यह मियाद पूरी हुई तो रिटर्निंग ऑफिसर ने नीलम संजीव रेड्डी को निर्विरोध विजेता घोषित कर दिया।
वह पहला मौका था जब भारत का राष्ट्रपति बिना मतदान के ही निर्विरोध निर्वाचित हो गया। रेड्डी जब राष्ट्रपति बने तब उनकी उम्र 64 वर्ष की थी। इस तरह वो देश के सबसे कम उम्र में राष्ट्रपति बने।

रेड्डी के नाम कई दूसरे रिकॉर्ड-
तो बात हो रही है पूर्व राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी की। वो पहले ऐसे राष्ट्रपति थे जो लोकसभा अध्यक्ष और मुख्यमंत्री रह चुके थे। 19 मई 1913 को आंध्र प्रदेश में अनंतपुरम जिले के इल्लुर गांव में पैदा हुए। नीलम संजीव रेड्डी की जिंदगी तब बदलाव आया जब जुलाई 1929 में उनके इलाके में महात्मा गांधी का आगमन हुआ था। गांधीजी से प्रेरित होकर उन्होंने पश्चिमी वस्त्रों का त्याग करते हुए खादी अपना लिया और स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। रेड्डी ने मद्रास एक अडयार स्थित थियोसॉफिकल हाई स्कूल से पढ़ाई की और वहां पास होकर अनंतपुर के गवर्नमेंट आर्ट्स कॉलेज में दाखिला लिया। 1958 में तिरुपति की वेंकटेश्वर यूनिवर्सिटी ने उन्हें डॉक्टर ऑफ लॉज की मानद डिग्री दी।1946 में कांग्रेस पार्टी से मद्रास विधानसभा के लिए चुने गए। पार्टी ने उन्हें विधायक दल का सचिव नियुक्त कर दिया। रेड्डी 1949 से 1951 तक मद्रास प्रांत के मंत्री रहे। 1951 में वो कम्यूनिस्ट लीडर त्रिमेला नागी रेड्डी से विधानसभा चुनाव हार गए। 1956 में आंध्र प्रदेश राज्य का गठन हुआ तो रेड्डी अक्टूबर में उसके पहले मुख्यमंत्री बने। हालांकि, उन्हें 1959 में कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया। तब रेड्डी ने मुख्यमंत्री पद छोड़ दिया। 1962 में वो फिर से आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। रेड्डी ने 1960 से 1962 के बीच बंगलोर, भावनगर और पटना के कांग्रेस महाधिवेशन की अध्यक्षता की थी। 1962 के गोवा कांग्रेस अधिवेशन में उन्होंने भारत की जमीन पर चीन का अवैध कब्जा हटाने को लेकर दृढ़ निश्चय की बात की तो लोगों ने उनकी खूब प्रशंसा की।

सक्रिय राजनीति से दो बार संन्यास-
वो तीन बार राज्यसभा सांसद चुने गए और लाल बहादुर शास्त्री सरकार में जून 1964 से स्टील और खान मंत्री रहे। उन्हें इंदिरा गांधी ने अपनी सरकार में परिवहन, नागरिक उड्डयन और पर्यटन बनाया। रेड्डी जनवरी 1966 से मार्च 1967 तक यह मंत्रालय संभालते रहे। 1969 में जब इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति चुनाव में उनका विरोध कर दिया तो इतने दुखी हो गए कि सक्रिय राजनीति से संन्यास ही ले लिया। रेड्डी दिल्ली छोड़कर अनंतपुर जाकर खेती-बाड़ी में जुट गए। 1975 में इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा कर दी और उनके विरोध में कई दलों ने मिलकर जनता पार्टी का गठन किया।तब जनता पार्टी के ऑफर पर रेड्डी ने राजनीति संन्यास तोड़ दिया और जनता पार्टी जॉइन कर ली। उन्होंने 1977 में राष्ट्रपति चुनाव लड़ा। उस चुनाव में कुल 4,532 मतदाता थे। इनमें 524 लोकसभा सांसद, 232 राज्यसभा सांसद जबकि 22 राज्यों के 3,776 विधायक थे। तब प्रत्येक सांसद के वोट की कीमत 702 थी। उस वक्त सिक्किम के विधायकों की सबसे कम सात जबकि सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश के विधायकों के वोट की कीमत 208 थी। वोटों की कीमत का मूल्यांकन 1971 की जनगणना के आधार पर किया गया था। रेड्डी की मुख्य प्रतिस्पर्धी रुक्मिणी देवी अरंदले थीं, लेकिन उनका नामांकन भी खारिज हो गया था।

नीलम संजीव रेड्डी का निधन 83 वर्ष की उम्र में 1996 में निमोनिया के कारण हुआ। बंगलोर के कलपल्ली बरियल ग्राउंड में उनकी समाधि है। उन्होंने Without Fear or Favour: Reminiscences and Reflections of a President नाम से एक पुस्तक लिखी जिसका प्रकाशन 1989 में हुआ था। और हां, नीलम संजीव रेड्डी 1969 के राष्ट्रपति चुनाव में इंदिरा गांधी के विरोध के कारण वीवी गिरी से हार गए। तब रेड्डी को 3.13 लाख वोट मिले थे जबकि 4.01 लाख वोट लेकर वीवी गिरी राष्ट्रपति निर्वाचित हुए थे।

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