भारत में धार्मिक जुलूसों के दौरान बढ़ती हिंसा
वरुण विजय
भारत में 2021 और 2023 के बीच धार्मिक जुलूसों के दौरान हिंसा की घटनाओं में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, जिससे कई राज्यों में शांति और सामाजिक सद्भाव प्रभावित हुआ है। इन जुलूसों के दौरान सांप्रदायिक तनाव और विवादों ने आम नागरिकों की सुरक्षा को खतरे में डाल दिया है। हिंसा के कारण निजी संपत्तियों को नुकसान पहुँचा है, धार्मिक स्थलों पर हमले हुए हैं और सैकड़ों लोग घायल हुए हैं, जिससे कानून-व्यवस्था पर सवाल उठ रहे हैं।
महाराष्ट्र (2021) में अमरावती, मालेगांव और नांदेड़ में धार्मिक जुलूसों के दौरान सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएँ हुईं, अफ़वाहों और मतभेदों ने तनाव को बढ़ा दिया। स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पुलिस ने लाठीचार्ज और आंसू गैस का सहारा लिया। बिहार (2022) के मुंगेर और नवादा में भी जुलूसों के दौरान उग्र नारेबाजी और पथराव के कारण हिंसा भड़क उठी, जिसमें पुलिसकर्मी और स्थानीय लोग घायल हो गए। राजस्थान के करौली और जयपुर में जुलूस के दौरान हुई हिंसा (2023) के कारण कई धार्मिक स्थलों पर हमले हुए, जिससे कानून-व्यवस्था बिगड़ गई और प्रशासन को कर्फ्यू और इंटरनेट बंद करने जैसी सख्त कार्रवाई करनी पड़ी। धार्मिक जुलूसों के दौरान हिंसा के प्रमुख कारणों में सोशल मीडिया पर अफवाहों और फर्जी खबरों का प्रसार, समाज में सांप्रदायिक विभाजन और पूर्वाग्रह और राजनीतिक दलों द्वारा ध्रुवीकरण के प्रयास शामिल हैं। इन कारकों ने तनाव को बढ़ावा दिया है, जिससे हिंसा की अधिक घटनाएं हुई हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार, 2021 में 15 बड़ी हिंसक घटनाएं दर्ज की गईं, जिनमें 500 से अधिक लोग घायल हुए और 3 की मौत हो गई। 2022 में 22 घटनाओं में 800 लोग घायल हुए और 7 की मौत हो गई। 2023 में हिंसा की घटनाओं की संख्या बढ़कर 30 हो गई, जिसमें 1000 से अधिक लोग घायल हुए और 10 की मौत हो गई। बढ़ती घटनाओं को देखते हुए सरकार और प्रशासन ने जुलूसों के लिए पूर्व अनुमति अनिवार्य कर दी है, संवेदनशील इलाकों में अतिरिक्त पुलिस बल तैनात किया जा रहा है और अफवाहों पर काबू पाने के लिए सोशल मीडिया पर नजर रखी जा रही है। धार्मिक जुलूसों में बढ़ती हिंसा ने समाज में अविश्वास का माहौल पैदा किया है और सांप्रदायिक सौहार्द को चुनौती दी है। भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने और सामाजिक शांति सुनिश्चित करने के लिए सरकार, प्रशासन और समाज को मिलकर प्रयास करने की जरूरत है।