जीवन परिचय

छत्तीसगढ़ के एक छोटे से गांव से निकल कर DSP बनी ललिता मेहर, जन्मदिन पर पढ़िये DSP बनने तक का सफ़र

रायपुर : हर कामयाब इंसान के पीछे किसी न किसी तरह की एक संघर्ष की कहानी छिपी होती है। इन्हीं में से एक DSP ललिता मेहर की भी कहानी है, जो लोगों के लिए प्रेरणा भी है। पैसों की तंगी से लेकर समाज की कुरीतियां और पढ़ाई के बीच विवाह के लिए रिश्ता घर तक पहुंचा। किसान पिता की मेहनत और मां के साथ खड़े रहने से पुलिस अफसर बनने तक का सफर इन्होंने तय किया है। छत्तीसगढ़ के एक छोटे से गांव से निकल कर DSP बन वर्तमान में रायपुर में अपनी सेवाएं दे रहीं ललिता मेहर आज अपना 25 वां जन्मदिन माना रही है।

ललिता ने बताया कि वो छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के एक छोटे से गांव गुडू की रहने वाली हैं। पिता किसान हैं। 5 भाई-बहनों में वे सबसे छोटी हैं। पिता खेती किसानी के काम के साथ बाजार-बाजार घूम कर कपड़ा बेचने का काम भी करते हैं। घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। जिस गांव में रहते हैं वहां समाज में बेटियों को लेकर आज भी कई कुरीतियां हैं। ललिता ने कहा कि, उनकी दो बड़ी बहनें पढ़ना चाहती थीं, लेकिन उस समय लड़कियों को ज्यादा पढ़ने नहीं दिया जाता था। एक बहन ने 9वीं तो दूसरी ने 12वीं तक की ही बड़ी मुश्किल से पढ़ाई की है। इसके बाद उनकी शादी करवा दी गई।

घर की आर्थिक तंगी के बीच ललिता की पढ़ाई भी मुश्किल हो रही थी। 5वीं तक गांव के ही स्कूल में और फिर 6वीं से12वीं तक जैसे-तैसे पुसौर की एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाई की। इस बीच लोग पिता से कहने लग गए थे कि बेटी है, पढ़ लिख कर क्या करेगी? शादी का समय आ गया है। हाथ पीले करवा दो। फिर भी पिता ने सामाजिक कुरीतियों के बीच सब की खरी-खोटी सुन जैसे-तैसे पढ़ाई करवाई। 12वीं की पढ़ाई के बाद ललिता ने आगे कॉलेज की पढ़ाई करने के लिए रायगढ़ गई। आर्थिक तंगी के बीच जैसे-तैसे उन्होंने फर्स्ट ईयर पास किया। जब सेकंड ईयर की पढ़ाई करनी शुरू की तो विवाह के लिए रिश्ता आ गया था।

2016 में बन गईं आर आई, फिर PSC क्लियर की
ललिता के भाई ने रेवेन्यू इंस्पेक्टर का फॉर्म भरवाया था। ललिता ने एग्जाम दिया और रेवेन्यू इंस्पेक्टर बन गई। बिलासपुर में ट्रेनिंग के बाद फिर अंबिकापुर में पोस्टिंग हुई। माता-पिता दोनों खुश थे। ललिता ने बताया कि CGPSC क्या होता है? इसके बारे में नहीं जानती थी। जब अंबिकापुर में काम कर रही थी तो उस समय आरआई बैच के कुछ लोग CGPSC की तैयारी कर रहे थे। इसके बाद ललिता ने CGPSC का एग्जाम देने का मन बनाया और तैयारी शुरू कर दी। एग्जाम दिया और साल 2017 में DSP बन गईं।

लड़कियां फोन कर कहती हैं हमें भी पढ़ना है, परिजन को समझाओ
कई गांव आज भी ऐसे हैं जहां लड़कियों को ज्यादा पढ़ने नहीं दिया जाता है। इन्हीं गांव की लड़कियां DSP का कहीं से मोबाइल नंबर लेकर उन्हें फोन करती हैं। पढ़ाई करवाने परिजन को समझाने के लिए कहती हैं। ललिता ने कई लड़कियों का भविष्य संवारने के लिए उनका साथ दिया। माता पिता को समझाया और बच्चियों को पढ़ने दिया। साथ ही अब भी जब खाली समय मिलता तो आश्रम में जाकर बच्चों की फ्री में क्लास लेती। मोहल्ले के बच्चों को फ्री में ट्यूशन पढ़ाती हैं।

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