कभी इंदिरा गांधी ने की थी कमलापति त्रिपाठी को पीएम बनाने की तैयारी, चंदौली रही कर्मभूमि
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लेकिन पार्टी के भीतर गुटबाजी तेज होने लगी थी। राज्यमंत्री चंद्रजीत यादव के घर बैठक बुलाई गई। इसमें इंदिरा समर्थक देबकांत बरूआ ने प्रणब मुखर्जी को बुलाया। चर्चा हुई कि अगर उनके नेता को पीएम पद छोड़ना पड़े तो क्या किया जाए? दो विकल्प थे – जगजीवन राम या स्वर्ण सिंह। इंदिरा समर्थकों ने तय किया कि जगजीवन राम को चुनना खतरनाक है। इंदिरा से उनकी अदावत का अंदाजा सबको था। स्वर्ण सिंह नतमस्तक नेता थे। सुप्रीम कोर्ट से पक्ष में फैसला आने पर वो तुरंत इंदिरा के लिए कुर्सी खाली कर सकते थे। पर जगजीवन राम ऐसा करने से मना भी कर सकते थे।
जब जगजीवन राम हैरत में पड़ गए
हालांकि इसी बीच इंदिरा के फेवरिट अफसर पीएन हक्सर ने एक चिट्ठी बनाई। इसमें इंदिरा को बेशर्त समर्थन देने की बात कही गई। देश भर के सीएम और नेताओं को इस पर दस्तखत करने को कहा गया। संजय गांधी हस्ताक्षर करने वालों का अपडेट मां को लगातार दे रहे थे। उड़ीसा की सीएम नंदिनी सत्पथि उसी शाम दिल्ली पहुंच कर दस्तखत कर दिए। ये इंदिरा के प्रति वफादारी की जताने की रेस थी। जीतने वाले को पीएम पद मिलने की सूक्ष्म आस भी थी।
इधर समाजवादी सोच के युवा नेता जगजीवन राम को आगे कर रहे थे। इंदिरा को इसकी भनक लग गई। वो खुद ही शतरंज की चाल समझने लगी थीं। इंदिरा ने प्रस्ताव दिया कि इस्तीफा देने की स्थिति में अंतरिम प्रधानमंत्री को नामित करने का अधिकार उन्हें ही मिलना चाहिए। जगजीवन राम और यशवंत राव चव्हाण ने इसका विरोध किया। दिवंगत पत्रकार कुलदीप नैयर ने अपनी किताब इमरजेंसी-रीटोल्ड में इसका जिक्र किया है। इंदिरा गांधी ने कमलापति त्रिपाठी को जरूरत पड़ने पर अंतरिम पीएम बनाने की पेशकश की। इंदिरा ने उन्हें यूपी से केंद्रीय कैबिनेट में शामिल किया था। ये जानकर जगजीवन राम रूष्ट हो गए। उन्होंने अपने एक साथी से कहा – ठीक है समर्थन कर देंगे उनका लेकिन इसी शर्त पर कि वो इंदिरा को दोबारा कुर्सी नहीं सौंपेंगे। हालांकि इसकी नौबत ही नहीं आई। इंदिरा ने पीएम रहते हुए आपातकाल घोषित कर दिया।