जीवन परिचय

HBDBhupeshBaghel : 2013 में मिली PCC अध्यक्ष की जिम्मेदारी,15 सालों से सत्ता में बनी भाजपा को दिया मात

Raipur News: छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल (Bhupesh Baghel) आज 63 वर्ष के हो गए. पार्टी के नेता और प्रदेश के लोग धूमधाम से उनका जन्मदिन मनाने की तैयारी कर रहे हैं. भूपेश बघेल के जन्मदिन पर आज हम उनके शरारती और नटखट बचपन पर प्रकाश डालेंगे. भूपेश बघेल को बचपन में लोग बबलू (Babloo) कहकर बुलाते थे. बबलू बचपन से ही विद्रोही स्वभाव के थे, जब वह कक्षा 10 के छात्र थे तो उन्होंने अच्छी सड़क के लिए एक सांसद की कार पर कीचड़ फेंक दिया था. गणित की पढ़ाई के लिए बबलू रोजाना 2 नाला पार कर सुबह 6 बजे मास्टर जी के घर पढ़ने पहुंच जाते थे.

प्राइमरी स्कूल में शुरू कर दी थी खेती किसानी
भूपेश बघेल आज कांग्रेस पार्टी के टॉप लीडरों में जाने जाते हैं, उनका बचपन ग्रामीण परिवेश में बीता. दुर्ग जिले के पाटन विधानसभा क्षेत्र के बेलौदी गांव में 23 अगस्त 1961 में भूपेश बघेल का जन्म हुआ. गांव के ही घर में भूपेश अपने भाई बहनों के साथ पढ़ाई करते थे. खेती किसानी का शौक उन्हें प्राइमरी स्कूल से ही लग गया था. खेती बाड़ी और पशुओं से उनको काफी लगाव था.  भूपेश बघेल के छोटे भाई हितेश बघेल बताते हैं कि लीडरशिप का भाव उनमें शुरू से ही था, गांव के लोग भी उनकी बात मानते थे.

स्कूल जाने के लिए 2 नाला करना पड़ता था पार 

बेलौदी गांव में उस समय पक्की सड़क नहीं थी. मिडिल स्कूल के लिए गांव से 4 किलोमीटर दूर मर्रा जाना पड़ता था, लेकिन जब बरसात का समय आता तो नालों के लबालब हो जाने से  आने जाने में दिक्कत होती थी. छात्र टायर के टीव के सहारे नाला पार करते थे. उनके छोटे भाई  हितेश  बताते हैं कि भूपेश बघेल तैरने में बहुत माहिर थे. जहां हम नाले में पैर रखने से डरते थे बबलू तैरते हुए फटाक से नाला पार कर लेते थे.

जब नाले में अपने दोस्त के साथ बह गए थे बघेल
भूपेश बघेल के बचपन के दोस्त परमानंद उन्हें बबलू दाऊ के नाम से पुकारते हैं. उन्होंने अपने बचपन की खट्टी-मीठी यादों के बारे में बताते हुए कहा कि बबलू दाऊ और हम एक साथ कैरम और शतरंज खेलते थे. उस समय गांव में नाला पार करने के लिए पुल नहीं था. नाला पार करने में बहुत कठिनाई होती थी. तब बबलू टायर के टीव से नाला पार करते थे. एक बार नाला में खूब बाढ़ आई थी. ये नाला उरला और कुरूदडीह के बीच में है. उस समय हम लोग बाढ़ के पानी में बह गए थे. पेड़ के झाड़ में फंसने से हमारी जान बच गई.

10 वीं क्लास में सड़क के लिए सांसद के कार में फेंक दी थी कीचड़

परमानंद ने आगे बताया कि बचपन में हमने बैल गाड़ी की भी खूब सवारी की है. गर्मी के दिनों में बैल गाड़ी में ही बारात जाती थीं. उन्होंने ये भी बताया की बबलू स्कूल के समय से ही आंदोलनकारी था. उन्होंने बताया कि 10वीं की पढ़ाई के दौरान एक खराब सड़क को लेकर बबलू दाऊ को इतना गुस्सा आया कि उन्होंने वहां से गुजर रेह सांसद अरविंद नेताम की  गाड़ी पर कीचड़ फेंक दिया

रोजाना 14 किलोमीटर पैदल चलते थे भूपेश बघेल

उनके टीचर हीरालाल भूपेश बघेल की पढ़ाई को लेकर कहते हैं कि भूपेश पढ़ाई में सामान्य थे, लेकिन पढ़ाई में उनकी रुचि बहुत ज्यादा थी. उन्होंने बताया कि भूपेश को स्कूल में खूब पिटाई पड़ी है, लेकिन उन्हें पढ़ाई में रुची थी इसलिए वह पिटाई के बावजूद सुबह 6 बजे 4 किलोमीटर पैदल चलकर मेरे घर पहुंच जाते थे और वो भी केवल गणित पढ़ने के लिए. फिर वहां से वापस घर जाते थे और फिर घर से स्कूल आते थे यानी भूपेश रोजाना 14 किलोमीटर पैदल चलते थे. लीडरशिप के जो गुण भूपेश में बचपन में झलकते थे वहीं गुण उनमें आज भी बरकरार हैं. नरवा गरवा घुरुवा बाड़ी ये सब उनके बचपन की कहानी हैं.

1994 में मध्यप्रदेश युवक कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष बने. 32 साल की उम्र में वे अविभाजित मध्यप्रदेश में पहली बार विधायक बने. 1993 में पहली बार पाटन विधानसभा से जीतकर विधायक बने. फिर 1998 में दूसरी बार भी पाटन से निर्वाचित हुए. 2003 में तीसरी बार, 2013 में चौथी बार और 2018 में पांचवीं बार पाटन से चुनाव जीते. वे मध्यप्रदेश के परिवहन मंत्री और परिवहन निगम के अध्यक्ष भी बने. 2003 से 2018 तक लगातार वे सशक्त विपक्ष की भूमिका में रहे और 2003 से 2008 के बीच वे विधानसभा में उपनेता प्रतिपक्ष भी रहे.

17 दिसंबर को ली मुख्यमंत्री पद की शपथ

2013 में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष की जिम्मेदारी मिली. गुटबाजी में उलझी कांग्रेस को ना केवल उन्होंने साधा बल्कि कांग्रेस की सत्ता की आस  में फांस लगाने वालों को भी पार्टी के बाहर का रास्ता दिखाया. नतीजा ये रहा कि पिछले 15 सालों से सत्ता का वनवास भोग रही कांग्रेस को 2018 विधानसभा चुनाव में छप्पर फाड़कर सीटें मिलीं. पहले साल जहां छत्तीसगढ़ के चार चिन्हारी, नरवा, गरूवा, घुरवा, बारी के नारे को उन्होंने घर –घर पहुंचाया. वहीं छत्तीसगढ़ की संस्कृति और अस्मिता की अलख घर-घर पहुंचाई.

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