अखबार बेचने से लेकर मिसाइल मैन बनने तक का सफ़र, एपीजे अब्दुल कलाम की कहानी
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27 जुलाई : एपीजे अब्दुल कलाम भारत के 11वें राष्ट्रपति थे। उन्होंने अपने जीवन में राष्ट्रपति होने के अलावा शिक्षक, वैज्ञानिक और लेखक की भूमिका भी निभाई थी।
वह भारत के एकमात्र वैज्ञानिक राष्ट्रपति थे। इसके अलावा और भारत के तीसरे ऐसे राष्ट्रपति थे जिन्होंने राष्ट्रपति बनने के पहले ही भारत रत्न प्राप्त किया था।
आज भी एपीजे अब्दुल कलाम भारत के सबसे चहेते राष्ट्रपति माने जाते हैं। हमारे देश में एपीजे अब्दुल कलाम का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है। भारत को परमाणु संपन्न देश बनाने में भी एपीजे अब्दुल कलाम की भूमिका बेहद अहम थी।
एपीजे अब्दुल कलाम ने अंतरिक्ष और रक्षा के क्षेत्र में भारत को एक संपूर्ण देश बनाया। एपीजे अब्दुल कलाम को भारतीय मिसाइल प्रोग्राम का जनक और मिसाइल मैन के नाम से जाना जाता है।
आज ही के दिन 2015 में की शाम अब्दुल कलाम भारतीय प्रबंधन संस्थान शिलोंग में ‘रहने योग्य ग्रह’ पर एक व्याख्यान दे रहे थे जब उन्हें जोरदार कार्डियक अरेस्ट हुआ और ये बेहोश हो कर गिर पड़े। लगभग 6:30 बजे गंभीर हालत में इन्हें बेथानी अस्पताल में आईसीयू में ले जाया गया और दो घंटे के बाद इनकी मृत्यु की पुष्टि कर दी गई। आइए जाने अब्दुल कलाम के जीवन के कुछ किस्से .
15 अक्टूबर 1931 को रामेश्वरम के छोटे से मुस्लिम मछुआरे परिवार में पैदा होने वाले एपीजे अब्दुल कलाम ने अपने जीवन में अखबार बेचने से लेकर राष्ट्रपति भवन तक का सफर तय किया।
भारत के 11 वें राष्ट्रपति होने के साथ-साथ एपीजे अब्दुल कलाम भारतीय वैज्ञानिक और जाने-माने इंजीनियर भी थे। उन्हें मिसाइल मैन के नाम से जाना जाता है।
अखबार बेचकर चलाई थी आजीविका, ढिबरी जलाकर पढ़ाई करते थे कलाम –
एपीजे अब्दुल कलाम के बचपन का दौर बड़ी कठिनाई से गुजरा। जहां बच्चे अपनी छोटी सी जिसके लिए हटकर बैठते हैं वही एपीजे अब्दुल कलाम ने छोटी सी उम्र में पूरे परिवार का दारोमदार अपने कंधे पर ले लिया।
एपीजे अब्दुल कलाम का परिवार बहुत निर्धन था। बचपन से ही आजीविका और अपनी शिक्षा की जिम्मेदारियां कलाम पर आ गई। अपनी आजीविका के साथ-साथ अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए एपीजे अब्दुल कलाम कभी रेलगाड़ी में तो कभी बस अड्डों पर अखबार बेचा करते थे।
इतना ही नहीं उनके घर में बिजली और रोशनी की की व्यवस्था भी नहीं थी। लेकिन कलाम रात को पढ़ने के लिए मिट्टी का तेल भर के ढिबरी जलाया करते थे और उसी की रौशनी सहारे पढ़ाई किया करते थे।
भले ही उन्हें अपने बचपन के गुजारने के लिए कठिन दौर से गुजरना पड़ा लेकिन आगे चलकर उन्होंने अपनी जिंदगी की राह बेहद सरल बना ली।
पायलट बनना चाहते थे कलाम –
एपीजे अब्दुल कलाम एक पायलट बनना चाहते थे इसीलिए उन्होंने एयरोस्पेस टेक्नोलॉजी का अध्ययन करना शुरू किया।
पायलट बनने की प्रेरणा उन्हें अपने शिक्षक सुब्रमण्यम अय्यर से मिली थी। बाद में इन्होंने मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में दाखिला लिया और वही से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग का अध्ययन शुरु किया।
पांचवी कक्षा से ही कलाम पायलट बन के लड़ाकू विमान उड़ाने ख्वाब देखते थे। आगे चलकर इन्होंने पायलट बनने के लिए परीक्षाएं भी दी लेकिन केवल कुछ अंकों से इन्हें निराशा का सामना करना पड़ा।
लेकिन राष्ट्रपति बनने के बाद जब भी ने फाइटर जेट में बैठने का मौका मिला तो इनके बचपन का ख्वाब पूरा हो गया। फाइटर जेट में उड़ान भरते समय राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम भावुक भी हो गए।
भारत को परमाणु शक्ति बनाने में भी था बहुत बड़ा योगदान –
जब भी भारत को परमाणु शक्ति और परमाणु संपन्न देश बनाने की बात आती है तो एपीजे अब्दुल कलाम और अटल बिहारी वाजपेई जी का नाम याद किया जाता है।
एपीजे अब्दुल कलाम ने भारत को परमाणु शक्ति बनाने में अपना बहुत बड़ा योगदान दिया। उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के साथ मिलकर पोखरण द्वितीय परमाणु परीक्षण को अंजाम दिया। पोखरण के द्वितीय परीक्षण में उन्होंने पूरी टीम को लीड किया।
भारत के 11 वें राष्ट्रपति बने कलाम –
रामेश्वरम के गरीब मुस्लिम परिवार में जन्मे एपीजे अब्दुल कलाम जमीन से ऊपर उठकर भारत के सर्वोच्च पद तक पहुंचे।
18 जुलाई 2002 को एपीजे अब्दुल कलाम भारत के 11 वें राष्ट्रपति के रूप में चुने गए। भाजपा समर्थित एनडीए घटक की ओर से उन्हें राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया गया। 25 जुलाई 2002 को उन्होंने राष्ट्रपति पद की शपथ ली और 25 जुलाई 2007 तक राष्ट्रपति के पद पर रहे।
राष्ट्रपति पद के कार्यकाल की समाप्ति के बाद कलाम फिर से अपने साधारण जीवन में वापस लौट आए और शिक्षण तथा लेखन कार्य में जीवन व्यतीत करने लगे।
DRDO और ISRO में बिताए 40 साल –
एपीजे अब्दुल कलाम ने अपने जीवन के 40 साल डीआरडीओ और इसरो में अंतरिक्ष वैज्ञानिक तथा रक्षा वैज्ञानिक के रूप में बिताए।
साल 1962 में एपीजे अब्दुल कलाम भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन में पहुंचे। इसरो में आने के बाद उन्होंने भारत के पहले स्वदेशी उपग्रह एस.एल.वी. 3 की लांचिंग में प्रोजेक्ट डायरेक्टर की भूमिका निभाई। 20 साल ISRO में बिताने के बाद तकरीबन 10 साल से भी अधिक एपीजे अब्दुल कलाम ने रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन DRDO में काम किया।
इतना ही नहीं इस दौरान वह भारतीय रक्षा मंत्री के सलाहकार भी रहे।
1980 में रोहिणी उपग्रह के प्रक्षेपण में भी इनकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण थी। इन्होंने अपने जीवन में अग्नि और पृथ्वी जैसी मिसाइलें बनाकर भारत की रक्षा तकनीक को विकसित किया।
एपीजे अब्दुल कलाम की जन्म तिथि को विश्व छात्र दिवस के रूप में मनाता है संयुक्त राष्ट्र संघ –
एपीजे अब्दुल कलाम का जीवन छात्रों से बेहद जुड़ा हुआ था क्योंकि कलाम खुद एक शिक्षक थे और छात्रों से बेहद प्रेम किया करते थे।
तमाम आयोजित कार्यक्रमों में एपीजे अब्दुल कलाम छात्रों को संबोधित किया करते थे और उनके प्रश्नों का उत्तर दिया करते थे। छात्र भी उनसे बहुत प्रेम करते थे। इसी कारण एपीजे अब्दुल कलाम के योगदानों को इतिहास के पन्नों में लिखने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने 15 अक्टूबर को उनकी जयंती व जन्म तिथि के दिन विश्व छात्र दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया।
तब से लेकर अब तक हर साल 15 अक्टूबर का दिन एपीजे अब्दुल कलाम की याद में विश्व छात्र दिवस के रूप में मनाया जाता है।
मिसाइल मैन क्यों कहे जाते हैं कलाम –
एपीजे अब्दुल कलाम को भारत का मिसाइल मैन कहा जाता है। उन्हें भारत के मिसाइल प्रोग्राम का जनक भी माना जाता है।
एपीजे अब्दुल कलाम ने भारतीय तकनीक से अग्नि और पृथ्वी जैसी मिसाइलों का निर्माण किया। साल 1985 में त्रिशूल मिसाइल का परीक्षण किया गया।
1988 में पृथ्वी मिसाइल का परीक्षण जबकि 1989 में अग्नि मिसाइल का परीक्षण हुआ था। अग्नि और पृथ्वी जैसी मिसाइलों के निर्माण के बाद एपीजे अब्दुल कलाम ने 1998 में सोवियत संघ (Russia) के साथ सहयोग करके सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल पर काम करना शुरू किया और इसी दौरान ब्रह्मोस प्राइवेट लिमिटेड को भी स्थापित किया गया।
ब्रह्मोस की स्थापना और ब्रह्मोस मिसाइल के प्रोजेक्ट में पी जे अब्दुल कलाम की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण थी। यह एक ऐसी मिसाइल थी जिसे धरती, आकाश, समुद्र कहीं से भी प्रक्षेपित किया जा सकता था।
इसी सफलता को हासिल करने के बाद भारत को मिसाइल संपन्न बनाने में उनके योगदान को देखते हुए एपीजे अब्दुल कलाम को मिसाइल मैन की संज्ञा दे दी गई और आज भी व भारत के मिसाइल प्रोजेक्ट के जनक के रूप में जाने जाते हैं।
वैज्ञानिक होने के साथ-साथ लेखक भी थे कलाम –
एपीजे अब्दुल कलाम वैज्ञानिक होने के साथ-साथ एक शिक्षक और प्रतिभाशाली लेखक भी थे। अपने जीवन में उन्होंने संघर्ष और सफलता की कई सारी पुस्तकें लिखी जो हमारी युवा पीढ़ी की धरोहर हैं।
इन पुस्तकों में विंग्स ऑफ़ फायर, इगनाइटेड माइंड, इंडिया 20-20, गाइडिंग सोल, मिशन इंडिया और टारगेट 3 बिलियन इत्यादि जैसी तमाम पुस्तकें लिखी हैं जिनमें सेव इंसान फायर उनकी ऑटो बायोग्राफी यानी की आत्मकथा है।
यह सारी पुस्तकें हमारी युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्रोत हैं जिनसे सपनों को साकार करने की अदम्य शक्ति और प्रेरणा प्राप्त होती है।
1997 में मिला भारत रत्न –
विज्ञान और राष्ट्र की सेवा में एपीजे अब्दुल कलाम के योगदान ओं को देखते हुए 1997 में उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
इतना ही नहीं उन्हें भारत रत्न के अलावा 1981 में पद्मभूषण और 1990 में पद्म विभूषण तथा 2000 में रामानुजन अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया था।
27 जुलाई 2015 को मेघालय के शिलांग में IIM में व्याख्यान देते हुए भारत के मिसाइल मैन एपीजे अब्दुल कलाम को दिल का दौरा पड़ा और उनकी मृत्यु हो गई।