भारतीय टीम को दादागिरी सिखाने वाले कप्तान, जिस पर लगा था घमंडी होने का आरोप
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नई दिल्ली : भारतीय क्रिकेट टीम में कई महान कप्तान हुए। उन्हीं में एक थे यानी सौरव गांगुली, जिन्हें लोग प्यार से ‘दादा’ बुलाते हैं। इतिहास गवाह रहा है, दादा दूर दृष्टि रखने वाले कप्तानों में से एक थे। दादा भारतीय क्रिकेट इतिहास के अडिग, समझदार और दमदार कप्तान रहे हैं। इन्होंने ही भारतीय टीम को दादागिरी सिखाई।
सौरव गांगुली यानी ‘दादा’ ने विदेशी धरती पर भारत को जीत का स्वाद चखाया। सौरभ गांगुली ने विरोधी टीमों की आंखों में आंखें डालकर मुकाबला करना सिखाया। दादा ने ही सहवाग, युवराज और धोनी जैसे युवा खिलाड़ियों को मौका देकर देश की सर्वश्रेष्ठ टीम की नींव रखी थी। आज उनके जन्मदिन के मौके पर जानतें हैं, उनकी कहानी के बारे में।
फुटबॉलर बनना चाहते थे सौरव गांगुली
गौरतलब हो कि सौरभ गांगुली का जन्म 8 जुलाई 1972 को कोलकाता के एक बंगाली परिवार में हुआ था। उनके पिता बंगाल क्रिकेट एसोसिएशन के सदस्य थे। इस वजह से उनका ग्राउंड पर आना-जाना था। वह क्रिकेट से ज्यादा फुटबॉल को पंसद करते थे और एक फुटबॉलर बनना चाहते थे। दसवीं तक उन्होंने फुटबॉल खेला। उनकी शैतानियों की वजह से उन्हें क्रिकेट ग्राउंड पर भेजा जाने लगा और इस तरह उनकी जिंदगी में क्रिकेट का प्रवेश हुआ।
सौरभ गांगुली ने साल 1989 में रणजी में डेब्यू किया। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। 11 जनवरी 1992 में वेस्टइंडीज के खिलाफ सौरभ गांगुली ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में डेब्यू किया। महज एक मैच के बाद ही सौरभ को टीम से ड्रॉप कर दिया गया। उन पर आरोप लगा कि वह घमंडी हैं। हालांकि, बाद में यह आरोप गलत साबित हुआ। साल 1996 में इंग्लैंड में बेहतरीन प्रदर्शन करने के बाद जब वह भारत लौटे तो उन्हें किंग ऑफ कोलकाता कहके पुकारा गया।
साल 2000 में जब भारतीय क्रिकेट में फिक्सिंग का खुलासा हुआ तो टीम का भविष्य अंधेरे में खोने जा रहा था। सचिन तेंदुलकर ने कप्तानी करने से माना कर दिया। तब सौरव गांगुली ने आगे बढ़कर टीम की कमान थमी। दादा की कप्तानी में भारतीय क्रिकेट टीम का नया अध्याय शुरू हुआ। विरोधी टीमों को उनके घरों में मात देकर भारतीय टीम के नाम डंका बजाया। दादा ने भारतीय टीम को दादागिरी सिखाई, जिससे टीम बेखौफ होकर खेलने लगी।