जीवन परिचय
मुख्यमंत्री तो बहुत हुए लेकिन चौधरी एक ही हुए, दुनिया से जाने के 36 साल भी खूब चर्चा
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29 मई. चौधरी चरण सिंह की आज 36वीं पुण्यतिथि हैं। यूपी के मुख्यमंत्री, देश के गृहमंत्री और देश के प्रधानमंत्री रहे चरण सिंह उन नेताओं में हैं, जिनकी उनके दुनिया से जाने के 36 साल भी खूब चर्चा होती है।
खासतौर से उत्तर प्रदेश के लोग अपने इस किसान नेता, चौधरी साब को खूब याद करते हैं। पश्चिमी यूपी के बुजुर्गों की जुबान में कहें तो मंत्री, मुख्यमंत्री तो बहुत हुए लेकिन चौधरी एक ही हुए और वो थे चरण सिंह।
यूपी के हापुड़ में पैदा हुए चरण सिंह को लेकर यूं तो कई किस्से हैं जो उनके पूरे व्यक्तित्व को समझने के लिए काफी हैं। आइए उनके ये किस्से आपको बताते हैं।
साल 1080 में यूपी में विधानसभा चुनाव हो रहे थे। फैजाबाद के एक युवा नेता गोपीनाथ वर्मा चौधरी साहब के पास पहुंचे। उन्होंने कहा कि प्रदेश अध्यक्ष ने मेरी जगह एक शराब कारोबारी का नाम टिकट के लिए तय कर दिया। चौधरी साहब ने प्रदेश अध्यक्ष रामवचन यादव से गोपीनाथ वर्मा का नाम काटने की वजह पूछी। रामवचन यादव बोले, चौधरी साहब शराब कारोबारी ने पार्टी को 9 लाख का चंदा दिया है। अब टिकट नहीं दें तो क्या करें। चौधरी साहब ने गुस्से में जवाब दिया- हम किसी शराब कारोबारी को नहीं लड़ाएंगे। जाकर उसके 9 लाख लौटा दो और शराब कारोबारी के पैसे लौटा दिए गए। शराब कारोबारी का टिकट काट दिया। ऐसे ही थे चौधरी चरण सिंह, जिनकी बातें और काम में कोई दुराव नहीं था। जो कहते थे, वो करते भी थे।
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भ्रष्टाचार के कितने खिलाफ थे, इस किस्से से समझिए-
साल 1979 में इटावा के ऊसराहार थाने में एक बुजुर्ग पहुंचता है। परेशान सा दिख रहा ये शख्स पुलिसवालों से कहता है कि वो किसान है। मेरठ से यहां से बैल खरीदने आया था। किसी ने रास्ते में जेब काट ली। जेब में कुछ सौ रुपए थे। हुजूर रपट लिख लीजिए और मेरे पैसे खोज दीजिए। थाने में बैठे हेड कॉन्स्टेबल ने दस बातें पूछीं लेकिन रिपोर्ट लिखने की हामी ना भरी। किसान को उदास देख एक सिपाही आया और बोला, खर्चे-पानी का इंतजाम कर दे तो रपट लिख जाएगी। खैर 35 रुपए में रपट लिखना तय हुआ।
साल 1979 में इटावा के ऊसराहार थाने में एक बुजुर्ग पहुंचता है। परेशान सा दिख रहा ये शख्स पुलिसवालों से कहता है कि वो किसान है। मेरठ से यहां से बैल खरीदने आया था। किसी ने रास्ते में जेब काट ली। जेब में कुछ सौ रुपए थे। हुजूर रपट लिख लीजिए और मेरे पैसे खोज दीजिए। थाने में बैठे हेड कॉन्स्टेबल ने दस बातें पूछीं लेकिन रिपोर्ट लिखने की हामी ना भरी। किसान को उदास देख एक सिपाही आया और बोला, खर्चे-पानी का इंतजाम कर दे तो रपट लिख जाएगी। खैर 35 रुपए में रपट लिखना तय हुआ।
रपट लिखकर इस किसान ने दस्तखत करने की बजाय जेब से मुहर निकाली और लगा दी। साथ में लिखा चरण सिंह। जी हां, ये किसान चरण सिंह ही थे जो भ्रष्टाचार की शिकायत पर काफिला दूर छोड़ पैदल थाने पहुंचे थे। इसके बाद पूरा थाना सस्पेंड कर दिया गया। फिलहाल ऊसराहार थाना जिला औरैया में पड़ता है।
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कितने सादगी पसंद थे, इस किस्से से समझिए-
चौधरी साहब कितने कम खर्चीले और सादगी पसंद थे। इसका पता इससे चलता है कि 1967 में जब वो यूपी के मुख्यमंत्री बने तो उनके पास एक ही गर्म शेरवानी थी। एक ही शेरवानी थी और वो भी फटने लगी थी। एक दो जगह सुराख हो गए तो चौधरी साहब ने रफू के लिए उसे दर्जी के पास भेज दिया। मजेदार बात ये हुई कि चौधरी साहब की शेरवानी दर्जी से खो गई। स्टाफ को ये पता चला तो सब घबरा गए। खैर जाकर चौधरी साहब को बताया तो उन्होंने कहा कि दर्जी पर गुस्सा करना ठीक नहीं दूसरी सिलवा लेते हैं। ये शेरवानी जो 1967 में सिली उसको उन्होंने 1978 तक पहना। चरण सिंह की शेरवानी का ये किस्सा राजेन्द्र सिंह ने ‘एक और कबीर’ नाम की किताब में लिखा है।